नेत्र (Eyes)
नेत्र (Eyes), मनुष्य की पाच ज्ञानेन्द्रियो (Sense Organs) में से एक है। त्वचा, आँख, नाक, कान, जिह्वा 5 ज्ञानेन्द्रियाँ है-
नेत्र की संरचना (Eye structure):
नेत्र शरीर के सबसे जटिल अंगों में से एक है और इसके कार्य एक कैमरे के कार्य जैसा होता है। इसकी संरचना एक गेंद जैसी होती है, जिसकी बाहरी सतह दिखाई देती है और बाकी की संरचना नाक के दोनों ओर मौजूद अस्थि कोटर में सुरक्षित होती है। नेत्र के विभिन्न भाग इस प्रकार हैं-
आंख के बाहरी भाग (Outer part of the eye):
- केंद्रीय पुतली (Central pupil): नेत्र गोलक के केंद्र में छोटा काला छेद पुतली स्थित होता है। इसके माध्यम से प्रकाश आंख में प्रवेश करता है।
- आईरिस (Iris): यह संरचना पुतली के आसपास रंगीन रिंग की तरह होती है। यह काली, हरी या नीली रंग की हो सकती है, जो किसी व्यक्ति की आंखों का रंग निर्धारित करती है। आईरिस प्रकाश की मात्रा को सिलिअरी मांसपेशियों की मदद से आंख में प्रवेश करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है और प्रकाश की स्थिति के अनुसार संकुचन और विकास के आधार पर पुतली का आकार बदलते रहता है।
- कॉर्निया (Cornea): पुतली और आईरिस, जो पारदर्शी होते हैं, उन पर पतली उत्तल कवर होती है जो प्रकाश को आंख में प्रवेश की अनुमति देती है। चिकनी वक्रता कॉर्निया के स्पष्ट दृष्टि के लिए आवश्यक है। कॉर्निया की सतह में कोई विकृति होने पर, प्रकाश की किरणें असामान्य हो जाती हैं और दृष्टि में समस्याओं का कारण बन जाती हैं।
- श्वेतपटल (Sclera): यह केंद्रीय आईरिस और पुतली के चारों ओर आंख का सफेद भाग है और वास्तव में यह पादर्शी कॉर्निया को छोड़कर, जो कैमरे की भांति प्रकाश को प्रवेश की अनुमति देता है, एक मोटी, अपारदर्शी शीट की तरह पूरा नेत्र गोलक को कवर करती हैं।
- कंजक्टिवा (Conjunctiva): यह एक पतली अदृश्य पारदर्शी कोटिंग, सुरक्षा परत मिट्टी और बाहरी वस्तुओं को श्वेतपटल के साथ सीधे संपर्क में आने से रोकती है। इसमें रक्त वाहिकाएं समाहित होती हैं जो श्वेतपटल का पोषण करती हैं। इस परत के सामान्यतः संक्रमित होने पर नेत्रश्लेष्मलाशोथ (Conjunctivitis)(आँख का लाल होना) होता है।
आंख के भीतरी भाग (Inner part of the eye):
- लेंस (Lens): मानव लैंस वास्तव में आवर्धक लेंस (Magnifying lens) या चश्मे में प्रयुक्त द्वि-उत्तल लैंस (Bi-convex lens) जैसा दिखता है। यह एक विशेष प्रोटीन से बना होता है और बहुत लचीला होता है। यह आंख में प्रकाश को प्रवेश की मात्रा और वस्तु की दूरी के अनुसार व्यास व मोटाई को बदल सकता है ताकि आंखों से देखा जा सके।
- एंटीरियर चैम्बर (Anterior Chamber): कॉर्निया और लेंस के बीच की जगह को आंख का एंटीरियर चैम्बर कहा जाता है। यह एक विशेष जलीय तरल से भरा होता है, जिसे एक्वस ह्यूमरस (Aqueous Humor) कहा जाता है। यह एंटीरियर चैंम्बर के ढांचे में सामान्य तनाव को बनाये रखता है। इस तरह के तनाव का मोतियाबिंद जैसी स्थितियों में काफी महत्व होता है।
- पोस्टिरियर चैम्बर (Posterior chamber): लैंस के अतिरिक्त नेत्र गोलक के इंटीरियर भाग को मोस्टिरियर चैम्बर कहा जाता है। यह एक अन्य विशेष चिपचिपे जैली जैसे तरल पदार्थ से भरा होता है जिसे विट्रियस ह्यूमरस (Vitreous humerus) कहते हैं।
- कोरॉयड (Choroid): पोस्टिरियर चैम्बर में रक्त वाहिकाओं का एक जाल होता है जो आंख के इस कक्ष की संरचनाओं को रक्त की आपूर्ति के लिए उत्तरदायी होता है। रेटिना : यह आंख की सबसे महत्वपूर्ण परत है। यह विशेष प्रकाश संवेदनशील कोशिकाओं से बनी होती है, जो चित्रों के रंग और छवियों के काले और सफेद अंश को अच्छी तरह से अवशोषित करती है और उन्हें इलेक्ट्रिकल संवेदन में परिवर्तन कर मस्तिष्क द्वारा संसाधित होने पर दिखाई देती है।
- ऑप्टिक तंत्रिका (Optic Nerve): यह दृष्टि की वह तंत्रिका है, जो रेटिना से इलेक्ट्रिकल संवेदन इकट्ठा करती है और उन्हें मस्तिष्क के दृश्य केंद्रों तक पहुंचाती है। इस प्रकार, जब भी हम अपनी आंखें खोलते हैं, आईरिस पुतली का आकार इतना समायोजित हो जाता है कि प्रकाश की उचित मात्रा ही आंख में प्रवेश कर पाती है। लैंस से प्रकाश इतना फोकस होता है कि यह रेटिना पर एक सही छवि बनाता है। रेटिनल कोशिकाएं दृश्य संवेदन को इलेक्ट्रिकल संवेदन में परिवर्तित कर उन्हें ऑप्टिक नर्व के द्वारा मस्तिष्क को संचारित करती हैं।
- रक्त वर्णान्धता (Blood color blindness): इसे डाल्टोनिज्म (Daltonism) भी कहते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति लाल एवं हरे रंग का भेद नहीं कर पाते हैं। यह रोग वंशगति के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है।
दृष्टि दोष (visual impairment):
निकट दृष्टि दोष (myopia):
नेत्रगोलक बड़ा हो जाता है, बिम्ब रेटिना पर न पड़ कर पहले ही बन जाता है। इसमें अवतल लेंस (Concave lens) का उपयोग करते हैं।
दूर दृष्टि दोष (Hyperopia):
नेत्रगोलक छोटा हो जाता है, बिम्ब रेटिना पर न पड़ कर रेटिना के पीछे बनता है। इसमें उत्तल लेंस (convex lens) का उपयोग करते हैं।
जरा दूर दृष्टि (Press biopia):
बढ़ती उम्र के साथ पेशियां कम लचीली हो जाती है जिससे लैंस कड़ा हो जाता है। और तारा छोटा होने लगता है। यह वृद्धावस्था का रोग है। क्षैतिज तल में रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख लेता है परन्तु खड़े तल में रखी वस्तुओं को नहीं देख पाता है। बेलनाकार लेंस (Cylindrical lens) का प्रयोग किया जाता है।
द्विदृष्टिता (Diplopia):
आंख की मांसपेशियों से, पक्षाघात (Paralysis) के कारण दो छवियों का दिखना, प्रत्येक आंख वस्तु की अपनी छवि बनाती है। मस्तिष्क प्रत्येक आंख से अभ्यावेदन को जोड़ती है और उन्हें एक स्पष्ट चित्र के रूप में मानती है। आंखों को हिलाने वाली या आंखों की गति को नियंत्रित करने वाली तंत्रिकाओं को नुकसान होने से दोहरी छवि बनने के समस्या हो सकता है।
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