हिमाचल प्रदेश का इतिहास अत्यधिक प्राचीन है। भारत के इस पहाड़ी राज्य का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव अस्तित्व का अपना इतिहास। इस बात की सत्यता इस प्रदेश से प्राप्त प्राचीन उपकरणो , औजारों व अन्य प्रमाणों से सिद्ध होती है।
ऐतिहासिक स्रोत (Historical source):
इतिहास लिखने के लिए कुछ तथ्यों तथा प्रमाणों की आवश्यकता होती है। हिमाचल में इतिहास लेखन में सबसे बड़ी कमी यहां पर इतिहास से संबधित सामग्री की कमी रही है। यहां पर किसी भी काल का क्रमबंध और पूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में उपलब्ध आधार संस्कृत साहित्य, यात्रा विवरण , सिक्के , अभिलेख वंशावलियाँ प्रमुख है। इन सब को ध्यान में रख कर एक वैज्ञानीक ढंग से इतिहास की रचना की जा रही है।
शिलालेख और ताम्रपत्र (Inscriptions and Copperplaque):
शिला लेख हिमाचल प्रदेश के प्राचीन इतिहास के अध्यनन में काफी सहायक सिद्ध हुवे है। इनमे मंडी में सलोनू का शिलालेख ,काँगड़ा पथयार और कनिहारा के शिलालेख ,हाटकोटी में सूनपुर की गुफा का शिलालेख , जोनसार बाबर क्षेत्र में अशोक का शिलालेख प्रमुख है। इस सन्दर्भ में अभिलेख भी महत्वपूर्ण है। ये अभिलेख फरमान या सनद है जो एक शासक द्वारा दूसरे शासक को ,या जनता के लिए होता है। सिक्कों पर मेले अभिलेख त्रिगर्त ,कुलीन तथा औदुम्बरों के गणराज्य या उनके राजाओं का उलेख करते है। बैजनाथ के एक मंदिर से प्राप्त गुप्तोत्तर कालीन अभिलेख , कुल्लू में सालरु गुपतकालीन अभिलेख ,निरमंड से प्राप्त ताम्रपत्र आदि प्रमुख आदि प्रमुख है। इस के अलावा चम्बा और कुल्लू से लगभग दो सौ ताम्रपत्र प्राप्त हुए है जो प्राचीन इतिहास की कड़ी को जोड़ने में सहायक है। शिलालेखों के अलावा सिक्कों का हिमाचल प्रदेश के इतिहास में प्रमुख स्थान रहा है।
सिक्के तथा मुद्रा (Coins and money):
हिमाचल के राजाओं ने अपनी मुद्रा का प्रचलन किया था। इनमे काँगड़ा ,चम्बा ,और कुल्लू प्रमुख थे। कुल्लू से प्राप्त वीरयश नामक राजा द्वारा चलाया गया सिका कुल्लू का सबसे प्रचीन सिक्का है। यह ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी का है। शिमला और काँगड़ा से प्राप्त कुछ सिक्के इससे भी पुराने है। इन्हें आहत सिक्के कहा जाता है। अन्य प्रमुख सिक्कों में ताँबा ,चांदी ,और कांसा आदि के सिक्के प्रमुख है। जिनमे त्रिगर्त ,औदुम्बर ,कुणिंद ,योधेय आदि गण राजाओं की जानकारी मिलती है। यूनान और कुषाणों की मुद्राएँ भी शिमला और काँगड़ा से प्राप्त हुई है। इस क्षेत्र में परवर्तीकालीन सिक्के बहुत कम मिले है। इनको वृषभ अशवसार प्रकार के सिक्के कहा जाता है।
वंशावलियाँ (Genealogies):
हिमाचल के इतिहास को जानने में वंशावलियों ने अपनी अहम् छाप छोड़ी है। ये वंशावलियाँ पहाड़ी राजपरिवारों में बहुत सख्यां में प्राप्त हुई है। इन वंशावलियों की तरफ सबसे पहले मूर क्राफ्ट ने ध्यान आकर्षित किया। काँगड़ा वंशावलियों को खोजने की सलाह इन्होंने ही दी थी। बाद में कनिघम ने काँगड़ा ,नूरपुर।,चम्बा ,मंडी ,सुकेत आदि राजघरानो की वंशावलियाँ खोजी थी। कैपटन हारकोर्ट ने कुल्लू की वंशावलियाँ खोजी थी।
स्मारक तथा इमारतें (Monuments and Buildings):
स्मारक तथा इमारतों का प्रयोग भी हिमाचल के इतिहास को जानने के लिए किया जा सकता है। हिमाचल में आज भी ऐसी इमारतें तथा स्मारक है जो इतिहास को सँजोए हुवे है। इनमे से काँगड़ा का किला तथा हिमाचल के पुराने मंदिर शामिल है। इन सांस्कृतिक सम्पितियों को भी हिमाचल प्रदेश की ही नही बल्कि भारत की प्रमुख राजनीतिक धारा के साथ यहाँ के क्षेत्रों का इतिहास जानने के लिए स्वीकार करते है।
यात्रा विवरण (Travel details):
एहसकारों तथा विद्वानों द्वारा की गई यात्राओं का क्रमबद्ध विवरण भी इस प्रदेश के इतिहास को जानने में सहायक हुआ है। हिमाचल का सबसे पुराना विवरण टॉलेमी का है। भारत की अवस्था पर लिखा ग्रन्थ दुसरी शताब्दी का है। इस ग्रन्ध में कुलिन्दों का भी वर्णन मिलता है। चीनी यात्री भारत भ्रमण पर 630 ई पूर्व में आया 15 वर्षों तक भारत के बारे में लिखा। इसने अपने विवरण पर त्रिगर्त ,कुल्लू आदि जनपदों पर काफी लिखा है। अलबरूनी ने भी इन जनपदों का बिस्तृत वर्णन किया है। मुगल राजाओं ने भी इस प्रदेश पर काफी लिखा है। अग्रेजों में विलियम फ्रिन्जर ,थॉमस कोरियार्ट ,वर्नियर ,जॉर्ज फरिस्टर ,जेम्स वैली ,अलेग्जेंडर जेराड, विलियम मूरक्राफ्ट ,आदि ने समय समय पर इस पर्वतीय क्षेत्र की यात्रा की और इस क्षेत्र की समाजिक ,आर्थिक ,राजनितिक दशा के बारे में अपने यात्रा विवरणों में हिमाचल के बारे में लिखा।