मौलिक अधिकार: स्वतंत्रता का अधिकार
संविधान के भाग-3, अनुच्छेद 19-22 स्वतन्त्रता के अधिकार(Right to Freedom) के बारे में है। अनुच्छेद19 में कुल-6 मूलभूत स्वतन्त्रताओं को प्रत्याभूत करता है। अनुच्छेद-20, अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण प्रदान करता है। अनुच्छेद-21 में प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को संरक्षित किया गया है। अनुच्छेद 21-(क) को 86वे संविधान संशोधन अधिनियम (2002) द्वारा अन्तः स्थापित कर शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है। अनुच्छेद-22 में कुछ मामलों में गिरफ्तारी और नजरबंदी के खिलाफ संरक्षण प्रदान किया गया है। उपर्युक्त स्वतंत्रतायें मूल अधिकारों की आधार स्तम्भ हैं।
[अनुच्छेद 19(1)]: नागरिकों के कुछ अधिकारों का संरक्षण:
[Article 19(1)]: Protection of certain rights of citizens:
1. वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression): अनुच्छेद 19(1) (क) भारत के सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है-अपने विचारों एवं दृष्टिकोण को व्यक्त करने का अधिकार। वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधीन मूल अधिकार माना गया है इसके तहत-
- प्रेस की स्वतंत्रता
- राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार
- वाणिज्यिक भाषाण
- जानने का अधिकार (Right to information )
- मतदाता को सूचना का अधिकार
- चुप रहने का अधिकार
- सूचनाओं तथा समाचारों को (साक्षात्कार आदि से) जानने का अधिकार
2. सभा एवं सम्मेलन की स्वतंत्रता (Freedom of Meeting and Assembly): अनुच्छेद 19(1) (ख) भारत के सभी नागरिकों को यह स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वह अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए शांतिपूर्ण तथा निरायुध सम्मेलन कर सकते हैं। यह स्वतंत्रता वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही अंग है। इसमें सार्वजनिक सम्मेलन बुलाने, सभा करने तथा जुलूस निकालने का अधिकार भी शामिल है।
3.संगठन या संघ बनाने की स्वतंत्रता (Freedom to Form Associations or Unions): अनुच्छेद 19( 1 ) (ग) द्वारा नागरिकों को संगठन या संघ बनाने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है। यह एक महत्वपूर्ण अधिकार है क्योंकि यह संसदीय लोकतंत्र का आधार है। इसके तहत ही राजनीतिक दलों, श्रमिक संघों, कम्पनी, सोसाइटी, साझेदारी आदि का गठन किया जाता है।
4. संचरण की स्वतंत्रता (Freedom to Move): अनुच्छेद 19( 1 ) (घ) समस्त भारतीय नागरिकों को भारत में आबाध संचरण की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इस प्रकार सम्पूर्ण भारत नागरिकों के लिए एक इकाई की तरह है।
5. निवास की स्वतंत्रता (Freedom to Reside): अनुच्छेद 19( 1 ) (ङ) द्वारा नागरिकों को भारतीय राज्य क्षेत्र में कहीं भी निवास करने तथा बस जाने की स्वतंत्रता प्रदान किया गया है। इसके लिए उसे किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
जम्मू-कश्मीर राज्य इसकाअपवाद है। भारत के किसी अन्य राज्य के निवासी इस राज्य में न तो कोई अचल सम्पत्ति क्रयकर सकते हैं। और न ही स्थाई रूप से निवास कर सकते हैं।
6. उपजीविका आदि की स्वतंत्रता (Freedom to Carry on any Occupation etc.): अनुच्छेद 19(1) (छ) द्वारा भारत के सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार अथवा कारोबार करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है।
[अनुच्छेद 20]: दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण:
[Article 20]: Protection in respect of Conviction:
अनुच्छेद-20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के समबन्ध में सरंक्षण प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित तीन प्रकार का संरक्षण प्रदान किया गया है-
1. कार्योत्तर विधियों से संरक्षण (Protection From Ex-post Facto Law): अनुच्छेद-20 (1) यह उपबन्धित करता है। कि- किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए तब तक दोषसिद्ध नहीं किया जायेगा जब तक कि उसने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जो उस कार्य को करते समय लागू किसी विधि के अधीन अपराध है।
2. दोहरे दण्ड से संरक्षण (Protection From Double Jeopardy): अनुच्छेद-20 (2) के अन्तर्गत दोहरे दण्ड से संरक्षण प्रदान किया गया है। इसके अनुसार किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित और दण्डित नहीं किया जायेगा।
3. आत्म अभिशंसन से संरक्षण (Protection From Self-in-Crimination): अनुच्छेद-20 (3) ‘आत्म अभिशंसन’ के सिद्धान्त से सम्बन्धित है। जिसके अनुसार किसी अपराध के अभियुक्त (accused) व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्ष्य (Witness) देने के लिए विवश नहीं किया जायेगा। अनुच्छ-20 (3) केवल दबावपूर्ण साक्ष्य देने को वर्जित करता है, यदि अभियुक्त स्वेच्छा से साक्ष्य देता है तो वह वर्जित नहीं है।
[अनुच्छेद 21]: प्राण और दैहिक स्वतंत्रता:
[Article 21]:Protection of Life and Personal Liberty:
अनुच्छेद-21 द्वारा प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया गया है। अनुच्छेद-21 के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ के अनुसार ही वंचित किया जायेगा, अन्यथा नहीं। अर्थात कोई व्यक्ति अपने प्राण तथा शरीरिक स्वतंत्रता से तभी वंचित किया जायेगा जबकि उसके लिए कोई विधिक उपबन्ध हो।
अनुच्छेद-21 विधायिका तथा कार्यपालिका दोनों के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है, तथा इसका संरक्षण नागरिक व विदेशी सभी व्यक्तियों को प्राप्त है।
[अनुच्छेद 21(क)] शिक्षा का अधिकार:
[Article 21(A)] Right to Education:
86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 21-क के अन्तर्गत शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा प्रदान कर दिया। अनुच्छेद 21-क, के अनुसार राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध करेगा। इस अधिकार को 1 अप्रैल 2010 से लागू किया गया है। 86वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 45 के स्थान पर नया अनुच्छेद प्रतिस्थापित कर राज्यों को यह निदेश दिया गया है कि वह 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की देख-रेख तथा शिक्षा देने का प्रयास करेगा। साथ ही इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद 51 क में के तहत् 11वाँ मूल कर्त्तव्य भी जोड़ा गया है। इसके अनुसार प्रत्येक माता-पिता या अभिभावक का यह मूल कर्तव्य है कि वह अपने बालक या प्रतिपाल्य के लिए 6-14 वर्ष की आय के बीच शिक्षा का अवसर प्रदान करेगा।
[अनुच्छेद 22] गिरफ्तारी और विरोध से संरक्षण:
[Article 22] Protection against arrest and detention:
अनुच्छेद-22 गिरफ्तार किये गये व्यक्तियों के अधिकार और स्वतंत्रता से सम्बन्धित है। अनुच्छेद-21 किसी व्यक्ति के प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को संरक्षित करता है किन्तु उसे ‘विधि (law) द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ के अनुसार अपने प्राण एवं दैहिक से वंचित किया जा सकता है।अनुच्छेद-22 प्रक्रियात्मक शर्तों को उल्लेख करता है कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया अर्थात् विधानमण्डल द्वारा निर्मित विधि में होना आवश्यक है। कोई व्यक्ति अनुच्छेद-21 के अनुसार अपने प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार वंचित किया जाता है तब उसे अनुच्छेद-22 द्वारा प्रदत्त अधिकार तथा स्वतंत्रतायें उपलब्ध होती हैं।
अनुच्छेद-22 के अन्तर्गत दो प्रकार की गिरफ्तारियों का उल्लेख किया गया है-
- सामान्य दाण्डिक विधि के अधीन
- निवारक निरोध विधि के अधीन
अनुच्छेद-22 का खण्ड (1) तथा (2) निवारक निरोध के शिवाय सभी प्रकार की गिरफ्तारिया पर लागू होता है। इसके अन्तर्गत गिरफ्तार व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं।
- गिरफ्तारी के कारण जानने का अधिक।
- अपनी रुचि के विधि व्यवसाय (अधिवक्ता ) से परामर्श एवं बचाव का अधिकार।
- गिरफ्तारी से 24 घण्टे के अन्दर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किये जाने का अधिकार।
- मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना 24 घन्टे से अधिक समय तक अभिरक्षा में निरक्षा में निरुद्ध (Restricted) न किये जाने का अधिकार।
44 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1978 के द्वारा निवारक निरोध की अवधि को 3 माह से घटाकर 2 माह तक कर दिया लेकिन इसे अब तक प्रभावी नहीं बनाया गया है। (POTA – Prevention of Terrorism Act) आतंकवाद निवारण अधिनियम – 2002 के तहत इसे निरस्त कर दिया गया।
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