हिमाचल का प्राचीन इतिहास
एक राज्य के रूप में हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय पर्वत में स्थित पहाड़ी प्रदेश है। मध्यकाल में, वर्तमान हिमाचल प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में विभिन्न राजवंशो का शासन रहा है। इन क्षेत्रों में कुछ प्राचीन राज्य विद्यमान रहे। समय समय पर छोटे-छोटे नये राज्यों अथवा रियासतों की स्थापना भी होती रही। हिमाचल प्रदेश में जो बड़े राज्य रहे हैं वह मुख्य रूप में पंजाब की पहाड़ी रियासते कहलाई। रियासतो को आरम्भिक वर्गीकरण में तीन वर्गों में विभाजित किया गया। प्रत्येक वर्ग के अन्तर्गत आने वाली सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रियासत पर वर्ग का नामकरण हुआ। यह तीन वर्ग (i) कश्मीर (ii) डुर्गर (iii) कागड़ा रहे हैं।
- कश्मीर वर्ग के अन्तर्गत कश्मीर और सिन्धु तथा जेहलम नदियों के मध्य की छोटी रियासतें रही हैं।
- डुर्गर अथवा जम्मू वर्ग के अंतर्गत जेहलम तथा रावी नदियों के मध्य की रियासतें रखी गई।
- त्रिगर्त (कांगड़ा) वर्ग रावी तथ तथा सतलज नदी के मध्य की रियासते थीं। पाणिनि ने रावी, व्यास और सतलुज के मध्य क्षेत्र के आयुधजीवी संघों का उल्लेख त्रिगर्त के रूप में किया है। महाभारत के द्रोणपर्व अध्याय 282 में त्रिगर्त के राजा सुशर्म चन्द का उल्लेख है। त्रिगर्त का प्रथम शासक भूमि चन्द्र और 231 वां शासक सुशर्मा था। सुशर्मा ने कौरवों के पक्ष में महाभारत युद्ध में भाग लिया था।
पहाड़ी रियासतों में जालन्धर वृत्त की रियासतें, कांगड़ा या कटोच, गुलेर, जसवां, दातारपुर, सीबा, चम्बा, कुल्लू, मण्डी, सुकेत, नूरपुर, कोटला, कुटलहेड़ थी। यह वर्गीकरण कनिघम द्वारा किया गया है। यह सभी रियासते तत्कालीन पंजाब की पहाडी रियासते रही हैं।
भारत में सिकंदर का आक्रमण (Attack of Alexander in India):
ह्वेनसांग के विवरण से पता चलता है कि काँगड़ा ,और कुल्लू के अलावा अन्य कई स्थानों पर बोद्ध धर्म का प्रचार किया था। सिकंदर ने लगभग 326 ई पूर्व भारत पर आक्रमण किया था यह ब्यास नदी तक पहुंच गया था जहाँ उस का मुकाबला पोरस से हुआ था। सिकंदर के सैनिक लड़कर थक गए थे उन्होंने हिमालय के दुर्गम और बीहड़ क्षेत्र में जाने से मना कर दिया था वे घर जाना चाहते थे। और आगे जाने से माना कर दिया। ये माना जाता है कि उन में से कुछ सैनिक कुल्लू के मलाणा गाँव में बस गए थे। तभी मलाणा वासी अपने आप को उनका वंशज मानते है।
हिमाचल में मौर्य काल का प्रभाव (Maurya period in Himachal):
चन्द्रगुपत मौर्य ने भारत में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। स्त्रोतों की जानकारी के अनुसार नंदवंश को समाप्त करने के लिए चाणक्य ने त्रिगर्त के राजा परवतेश से संधि करके सहायता मांगी थी। इसका उलेख जैनधर्म के ग्रन्ध परिशिष्टपर्वन में उलेख मिलता है कि चाणक्य हिमवतकूट आया था। बोद्ध ग्रंथो से भी यह जानकारी मिलती है की चाणक्य का पर्वतक नामक मित्र था। विशाखदत्त के ग्रन्ध मुद्रारक्षष से भी यह पता चलता है कि चाणक्य ने किरात ,कुलिंद ,और खश आदि युद्धप्रिय लोगों को चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में भर्ती किया था। चंद्रगुप्त ने कुलिंद राज्य को शिरमोरय की सज्ञा दी थी। जो बाद में सिरमौर बन गया। चंद्रगुप्त मौर्य के पोत्र अशोक ने नेपाल ,कमाऊं ,गढ़वाल ,हिमाचल प्रदेश और कश्मीर आदि क्षेत्र को अधिकृत कर लिया था। अशोक ने युद्ध विजय के स्थान पर धर्म विजय का अभियान चलाया था और बोद्ध धर्म का प्रचार किया उसने हिमालय क्षेत्र में बोद्ध धर्म के रचार के लिए आचार्य मजिहिमा थैर को भेजा । ह्वेनसांग के अनुसार अशोक ने काँगड़ा तथा कुल्लू में बुद्ध की याद में स्तूप बनवाया था। आज भी धर्मशाला के निकट चैतडू में बोद्ध स्तूप है जिसका निर्माण अशोक ने करवाया था।
हिमाचल में कुषाणों का प्रभाव (Effect of Kushanas in Himachal):
कुषाण बहुत शक्तिशाली थे; कुछ विद्वानों का माना था की कुषाणों ने आक्रमण 20 ई में किया होगा। कुषाण मध्य एशिया और बैक्ट्रिया से आये थे। कनिष्क और हुविष्क नामक दो ही शक्तिशाल्ली शासक हुऐ। कनिष्क ने कश्मीर से लेकर कमाऊं तक पर्वतीय क्षेत्र को अपने अधीन कर सम्राट की उपाधी धारण की। कुषाणों के सिक्के हिमाचल के अनेक स्थानों से मिले है। कालका कसौली के पास कनिष्क के ताम्र के 40 सिक्के मिले है। कनिष्क का एक सिक्का काँगड़ा के कनिहारा नामक स्थान से भी मिला है। चम्बा में भी कुषाण कला के प्रमाण मिले है।कुषाणों ने हिमाचल में अधिक समय तक शाशन नही किया पर इन राज्यों को कमजोर कर दिया था। जिसके परिणामस्वरूप ये पहाड़ी राज्य अधिक समय तक स्वतंत्र न रह सके और चौथी शताब्दी में समुंद्रगुपत ने इन्हे जीत कर अपने अधीन कर लिया।
गुपत काल का हिमाचल में प्रभाव (Gupta era in Himachal):
गुपत साम्राज्य की नींव चद्रगुपत ने 319-320 में रखी थी। उसका पुत्र समुंद्रगुपत महान विजेता था। चौथी शताब्दी से छठी शताबदी के बीच हिमाचल प्रदेश के कुछ पुराने गणतंत्र नष्ट हो गए और कुछ नवीन गणराज्यों का जन्म हुआ। चौथी शताब्दी के बाद औदुम्बर गणराज्यों के बारे में कुछ भी पता नहीं चलता है। प्रथम शताब्दी में शाकाल अथवा स्यालकोट में मिनेंडर अथवा संस्कृत के मिलिंद का उदभव हुआ जो ओदुम्बर का निकटतम पड़ोसी था और जिस ने औदुम्बर गणराज्य को दुर्बल किया। औदुम्बर इतने कमजोर हो गए की उनका स्वतंत्र सिक्का तीसरी चौथी शताब्दी तक न रहा।
चीनी यात्री ह्वेनसांग का विवरण (chinese traveler hansang):
हिमाचल में काफी चावल और दाल पैदा होते है। यहां के बन घने और छाया दार है। फल और फूल प्रचूर मात्रा में होते है। लोग साहसी और उतावले है तथा देखने में असाधारण लगते है यहाँ 20 मठ और लगभग 2000 पुजारी है। इनमे हीनयान और महायान दोनों के विद्यार्थी है। तीन देव मंदिर है जहाँ 5 सौ विद्यार्थी है जो पाशुपत धर्म को मानते है।
महमूद गजनवी का हिमाचल परआक्रमण (Mahmud Ghajnavi’s invasion on Himachal):
शंकर वर्मा के शासनकाल के उपरान्त हिमाचल पर महमूद गजनवी के आक्रमण का विवरण हैं। महमूद गजनवी ने अपने भारत आक्रमणों 1008-9 ई. के अभियान में कांगड़ा पर आक्रमण किया। 399 हिजरी अर्थात् 1008-09 ई. में लाहौर के राजा आनन्द पाल को पराजित करने के बाद महमूद गजनवी कांगड़ा की ओर बढ़ा। महमूद गजनवी के हिमाचल आक्रमण का कारण कांगड़ा के दुर्ग और धन दौलत की प्रसिद्धि थी। महमूद गजनवी को यह जानकारी थी कि कांगड़ा के दुर्ग में धन दौलत का भण्डार है।
महमूद गजनवी के आक्रमण के समय कांगड़ा दुर्ग में सीमित सैनिक थे। | दुर्ग में नाममात्र सैनिक होने के कारण गजनवी का सामना करना संभव नहीं था। दुर्ग में रह रहे ब्राह्मण पुजारी लड़ाई के विरूद्ध थे। सैनिकों को लड़ाई न करने पर विवश कर आत्म समर्पण करने के लिए प्रेरित किया गया।
महमूद गजनवी का समकालीन इतिहासकार अल-उत्वी महमूद गजनवी की कांगड़ा विजय को एक सरल विजय बताया है। कांगड़ा के दुर्ग पर अधिकार के पश्चात् उसने दुर्ग में संचित धन दौलत को बटोरा। इसकी पुष्टि उत्वी से हो जाती है। दुर्ग में सिक्कों की संख्या सात करोड़ शाही दिरहम के बराबर थी। महमद गजनवी ने दुर्ग से उपलब्ध धन दौलत को ऊंटों पर लादा। भारत से गजनी लौटने पर इस धन दौलत की एक प्रदर्शनी आयोजित की गई।
महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणाम स्वरूप कटोच राजवंश को धन दौलत से वंचित होना पड़ा।
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