Fundamental Right

मूल अधिकार का विकास (Development of Fundamental Right)

Fundamental Right


संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लेख अनुच्छेद (12-35) में किया गया है। मौलिक अधिकार वह अधिकार है जिसके लिए राज्य सरकार उन्हें प्राप्त करने के लिए बाध्य है, इसलिए यदि वह व्यक्ति नहीं करता है, तो व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में जा सकता है।

मूल अधिकार का सर्वप्रथम विकास ब्रिटेन में हुआ था। ब्रिटिश सम्राट ‘जान‘ द्वारा 1215 ई. में हस्ताक्षरित अधिकार पत्र (Magna Carta) मूल अधिकार सम्बन्धी प्रथम लिखित दस्तावेज है। इसके द्वारा सम्राट ने ब्रिटिश नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा का आश्वासन दिया था। 1689 ई. में लिखित बिल आफ राइटस (Bill of Rights) मूल अधिकारों के सम्बन्ध में एक अन्य प्रमुख दस्तावेज है।



फ्रांस में एक लम्बे संघर्ष के पश्चात सन् 1789 ई. में मानव एवं नागरिकों के अधिकार घोषणा-पत्र (TheDeclaration of Rights of Man and Citizens) द्वारा फ्रांस की जनता को कुछ मूलभूत अधिकार प्रदान किया गया था।

अमेरिका के मूल संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लेख नहीं था। 1791 में अमेरिकी संविधान में संशोधनों अधिकार-पत्र (Bill of Rights) को जोड़ कर । मूल अधिकार का प्रावधान किया गया।

भारत में मूल अधिकारों की मांग (Demand for fundamental rights in India):

भारत में मूल अधिकारों की मांग सर्वप्रथम संविधान विधेयक 1895 (Constitution Bill 1895) के माध्यम से की गयी थी। भारतीयों को मूल अधिकार प्रदान करने  की माँग 1917-1919 के दौरान कांग्रेस द्वारा, 1925 ई. में श्रीमती एनी बेसेण्ट द्वारा (कामनवेल्थ ऑफ इण्डिया बिल के माध्यम से) तथा 1928 ई. में मोती लाल नेहरु द्वारा (नेहरु रिपोर्ट के माध्यम से) भी की गयी।

1945 ई. में तेज बहादुर सप्रू (Tej Bahadur Sapru) ने भी संविधान के सम्बन्ध में प्रस्तुत रिपोर्ट में भारतीयों को मूल अधिकार दिये जाने की वकालत की था। संविधान निर्माण के समय संविधान सभा द्वारा मूल अधिकार तथा अल्पसंख्यक अधिकार के सम्बन्ध में परामर्श के लिए बल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में एक परामर्श समिति का गठन किया था। मूल अधिकार पर परामर्श हेतु एक उपसमिति का गठन भी जे.बी. कृपलानी (J. B. Kripalani), की अध्यक्षता में किया गया था। इनकी सिफारिश के आधार पर भारतीय संविधान के भाग-3 में मूलाधिकार सम्बन्धी प्रावधान किया गया।

मूलाधिकार भारतीय संविधान की एक प्रमुख विषेशता है; किन्तु इसे संविधान द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है।

मूल अधिकार की परिभाषा (Definition of fundamental right):

मूल अधिकार वे अधिकार होते हैं जो व्यक्ति के जीवन के लिए मूलभूत तथा अपरिहार्य होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये गये हैं। सामान्यतया व्यक्ति के इन अधिकारों में राज्य के द्वारा भी द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद (12-35) में संविधान में मौलिक अधिकारों (fundamental rights) का उल्लेख किया गया है। मूल अधिकार वें अधिकार है जिनका  हनन होने पर राज्य सरकार इन्हें दिलाने को बाध्य है ऐसा न होने पर व्यक्ति सीधे उच्चतम व उच्च न्यायालयों (Supreme Court or High Court) जा सकते है ।

मूल अधिकारों के वादों को देखने के लिए स्थानीय न्यायालयों  को अधिकार है। मूल अधिकारों के संबंध में समीक्षा उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) अनुच्छेद – 32 और उच्च न्यायालय (High Court) अनुच्छेद – 226 के अंतर्गत 5 रिटो के माध्यम किया जा सकता है। संविधान  लागू होते समय मूल अधिकार 7 श्रेणी के थे, परंतु 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1978 के द्वारा सम्पति के अधिकार को मूल अधिकारों के श्रेणी से निकालकर क़ानूनी/संवैधानिक अधिकार बना दिया गया । संपति का अधिकार वर्तमान समय में 300A उल्लेखित है।

न्यायालयों द्वारा जारी किए गए रिट के प्रकार (Types of Writs issued by Courts):

यदि मूल अधिकारों का राज्य द्वारा उल्लंघन किया जाता है, तो संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर करने और संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत नागरिकों को राज्य के खिलाफ न्याय प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है।

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
  • परमादेश रिट (Mandamus)
  • प्रतिषेध रिट (Prohibition)
  • उत्प्रेषण लेख (Writ of Certaiorari)
  • अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)

मूल अधिकारों के तहत आने वाले अनुच्छेद (Article under fundamental rights):

1. अनुच्छेद 12 – राज्य परिभाषा

2.अनुच्छेद 13 – विधि या कानून बनाने का अधिकार

3. अनुच्छेद (14-18) – समानता का अधिकार

  • अनुच्छेद (14) – विधि के समक्ष समता और विधियों का सामान संरक्षण 
  • अनुच्छेद (15) – राज्य द्वारा  धर्म, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर विभेद का प्रतिषेध 
  • अनुच्छेद (16) – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता
  • अनुच्छेद (17) – अस्पृश्यता का अंत
  • अनुच्छेद (18) – उपाधियों का अंत 

4. अनुच्छेद (19-22) – स्वतंत्रता का अधिकार

  • अनुच्छेद (19) – 6 अधिकारों की रक्षा 
  • अनुच्छेद (20) – अपराधों के दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
  • अनुच्छेद (21) – प्राण और दैहिक स्वतंत्रता
    •           अनुच्छेद (21 A) – शिक्षा का अधिकार (6 – 14 वर्ष की आयु तक)
  • अनुच्छेद (22) –  निरोध और गिरफ्तारी से संरक्षण 

5. अनुच्छेद (23-24) – शोषण के विरुद्ध अधिकार

  • अनुच्छेद (23) – मानव व्यापार और बाल श्रम का निषेध 
  • अनुच्छेद (24) – कारखानों में बाल श्रम का निषेध 

6. अनुच्छेद (25-28) – धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार

  • अनुच्छेद (25) – अंत:करण की और धर्म आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता 
  • अनुच्छेद (26) – धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद (27) – धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय / एकत्रण की स्वतंत्रता 
  • अनुच्छेद (28) – धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता 

7. अनुच्छेद (29-30) – संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार

  • अनुच्छेद 29 – अल्पसंख्यक हितों की सुरक्षा
  • अनुच्छेद 30 – स्थापना के लिए अल्पसंख्यकों और प्रशासक शैक्षिक संस्थानों का अधिकार

8. अनुच्छेद 31 – संपत्ति का समग्र अधिग्रहण {अब यह मौलिक अधिकार नहीं है}

9. अनुच्छेद (32) – संवैधानिक उपचार का अधिकार

 

Read also:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *