Formation of Lok Sabha
भारतीय शासन प्रणाली का दूसरा आधार स्तम्भ संघीय विधायिका या संसद (Legislature or parliament) है। इसका उपबंध संविधान के भाग-5, में अनुच्छेद 79 से 123 के अन्तर्गत किया गया है। संविधान के अनुच्छेद-79 में कहा गया है, ‘संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी, जिनके नाम क्रमशः ‘राज्य सभा’ और ‘लोक सभा’ होंगे। 1935 के भारतीय शासन अधिनियम में केन्द्र में द्विसदनात्मक (Bicameral) व्यवस्थापिका की स्थापना की गयी थी।
इस द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका को संविधान के द्वारा ‘संसद’ (Parliament) का नाम दिया गया है। अतः संसद के निम्न तीनभाग है-
- राष्ट्रपति (President)- जो कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख है।
- लोक सभा (House of the People)- इसे प्रथम या निम्न सदन या लोकप्रिय सदन भी खा जाता है।
- राज्यसभा (Council of States)- इसे द्वितीय या उच्च सदन भी खा जाता है।
लोकसभा(Lok Sabha)
लोकसभा संसद का प्रथम या निम्न सदन है। इसे लोकप्रिय सदन भी कहते हैं, क्योंकि इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित (Directly elected) होते हैं। लोकसभा राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है।
लोकसभा का गठन (Composition of Lok Sabha):
लोकसभा के गठन के बारे में प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 81 (article 81) में किया गया है। अनुच्छेद 81 के तहत मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निश्चित की गयी थी, लेकिन समय-समय पर इसमें वृद्धि की गयी। 31वें संविधान संशोधन 1974 के द्वारा लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गयी। परन्तु अब गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 द्वारा निश्चित किया गया है कि लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है।
इनमे से अधिकतम 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से व 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित किये जा सकेंगे एवं 2 सदस्य आंग्ल भारतीय वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 331 के तहत मनोनीत किये जाते हैं।
अनुच्छेद 330 के अनुसार लोकसभा में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन जातियों के लिए, राज्यवार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान आरम्भ में 10 वर्ष के लिए किया गया था, किन्तु पश्चात संविधान संशोधन द्वारा उसे 10-10 वर्ष के आगे बढ़ाया जाता रहा है।
84वें संविधान संशोधन द्वारा लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या और लोकसभा में राज्यवार प्रतिनिधित्व को 2026 तक [लोकसभा सदस्यों की संख्या 545 (543 निर्वाचित + 2 मनोनीत ) ही रहेगी ] यथावत् रखने का निर्णय लिया गया है।
लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन (Election of the members of Lok Sabha):
लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रयत्क्ष रूप से, वयस्क मताधिकार (Adult Franchise) के आधार पर होता है। निर्वाचन के लिए मुख्य तथ्य-
- वोट डालने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक हो।
- उसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक हो वह लोकसभा के निर्वाचन में मतदान कर सकता है (पहले 21 वर्ष की आयु प्राप्त व्यक्ति को वयस्क समझा जाता था, किन्तु संविधान के 61वें संशोधन 1989 द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गयी है।)
- अनुच्छेद 326 के अनुसार दिमागी रूप में बीमार न हो, अनिवास, या किसी अपराध या भ्रष्ट आचरण के आधार पर संसद द्वारा बनायी गयी किसी विधि (law) के अधीन मत देने से अयोग्य न हो।
लोकसभा के सदस्यों की योग्यता (Lok Sabha members’ qualifications):
लोकसभा सदस्यों की योग्यता(qualifications) अनुच्छेद 84 में दी गयी है। इसके अनुसार कोई व्यक्ति लोकसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य होगा, यदि वह-
- भारत का नागरिक है।
- उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष है।
- निर्वाचन आयोग द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष शपथ लिया है।
- उसके पास ऐसी अन्य योग्यतायें हो जो संसद द्वारा बनायी गयी विधि के तहत निर्धारित की गयी हैं।
लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल (Tenure of the Lok Sabha members):
- संविधान के अनुच्छेद 83(2) के अनुसार लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। 5 वर्ष की अवधि समाप्त होते ही लोकसभा भंग हो जाती है, परन्तु इस अवधि के पूर्व भी प्रधानमंत्री के परामर्श पर वह राष्ट्रपति द्वारा भंग की जा सकती है।
- आपातकाल की घोषणा लागू होने पर संसद विधि द्वारा लोकसभा के कार्यकाल वृद्धि कर सकती है जो एक बार में एक वर्ष से अधिक न होगी।
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा लोकसभा का कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया गया था, जिसे 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा पुनः 5 वर्ष कर दिया गया।
लोकसभा का अधिवेशन (The quorum of the Lok Sabha):
राष्ट्रपति वर्ष में कम-से-कम दो बार लोकसभा का अधिवेशन आहूत करते है। लोकसभा के एक सत्र की अन्तिम बैठक तथा आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच 6 माह से अधिक अन्तर न होगा। अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति (Quorum) सदन की कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग होना आवश्यक है। यदि इतने सदस्य उपस्थित न हों तो अध्यक्ष अधिवेशन को तब-तक के लिए निलम्बित कर देगा जब तक कि गणपूर्ति न हो जाय।
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