Medieval History of Haryana

Medieval History of Haryana (हरियाणा का मध्यकालीन इतिहास)

Medieval History: Mughal Period (मध्यकालीन इतिहास: मुगल काल)


बाबर का हरियाणा में आगमन (Babur’s arrival in Haryana)

प्रथम मुगल शासक बाबर ने भारत पर आक्रमण किया क्योंकि तत्कालीन समय में राजनीतिक दृष्टि से भारत की स्थिति बड़ी दयनीय थी। सम्पूर्ण देश छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था जो आपस में लड़ते रहते थे। इन परिस्थितियों का लाभ उठा कर बाबर ने 1526 ई. में भारत पर प्रबल आक्रमण किया। वह बिना किसी विरोध के हरियाणा की ऊपरी सीमाओं तक बढ़ आया । यहाँ के पानीपत नामक स्थान पर बाबर और दिल्ली के शासक इब्राहीम लोदी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ जिसमें इब्राहीम लोदी की पराजय हुई पानीपत की विजय के पश्चात् बाबर ने बड़ी सरलता से दिल्ली पर अधिकार कर लिया। प्रशासन चलाने के लिए बाबर ने हरियाणा को चार भागों में बांट दिया।

सरदार शेरशाह सूरी का हरियाणा में शासन (Sardar Sher Shah Suri ruled in Haryana)

बाबर की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी (पुत्र) हुमायूँ के शासन काल में यहां का प्रशासन यथावत बना रहा। 1540 में इस प्रदेश को सरदार शेरशाह सूरी ने हुमायूं से छीन लिया। शेरशाह ने हरियाणा की शासन-व्यवस्था में विशेष- रूचि ली और उसने हरियाणा के किसानों की स्थिति को उत्तम बनाने के लिए अनेक सुधार किये। शेरशाह की मृत्यु के पश्चात् हुमायूं ने 1555 में अपने खोये हुये राज्य पर पुनः अधिकार कर लिया।

अकबर का हरियाणा में शासन (Akbar’s rule in Haryana)

 हुमायूं के पश्चात् उसका पुत्र अकबर गद्दी पर बैठा उस समय रिवाड़ी में हेमचन्द्र (हेमू) शासन था, जो कि अकबर का सबसे प्रबल शत्रु था। हेमू ने 22 लड़ाइयां लड़ी थीं और से एक में भी वह पराजित नहीं हुआ था। हेमू ने शाही छत्र के नीचे बैठ कर अपने आपको की का शासक घोषित कर दिया था। जिसके परिणामस्वरूप अकबर और हेमू के बीच 1556 पानीपत का द्वितीय युद्ध हुआ जिसमें हेमू की पराजय हुई । अकबर ने शासन को सुव्यवस्थित से चलाने के लिए अपने राज्य को 15 सूबों में बांट दिया।

मराठों का हरयाणा में अधिकार (Marathas rule in Haryana)

सन् 1750 में मराठों ने दिल्ली पर आक्रमण किया । परन्तु उन्हें सफलता तीन वर्ष बाद मल्हारराव होल्कर के पुत्र खाण्डेराव के दिल्ली आक्रमण से मिली। मुगल सम्राट् अहमदशाह और उसका प्रधानमंत्री इन्तजाम-उ-दौला उसका विरोध करने की क्षमता नहीं रखते थे। 1754 में आलमगीर (मराठों द्वारा बनाया गया शासक) ने मराठों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्हें हरियाणा का पवित्र स्थान कुरुक्षेत्र प्रदान किया। 1756-57 तक मराठे हरियाणा पर पूर्ण रूप से छाये रहे।

हरियाणा पर अधिकार करने के उपरान्त मराठे और आगे बढ़े और उन्होंने पंजाब पर भी अधिकार कर लिया। मराठों द्वारा पंजाब पर कब्जा करने के परिणामस्वरूप मराठों और अहमदशाह अब्दाली के बीच पानीपत (हरियाणा) का तीसरा युद्ध हुआ। इस युद्ध में अब्दाली की विजय हुई।

अंग्रेजों का हरियाणा में आगमन (British arrival in Haryana)

सन् 1798 में लार्ड वेलेजली (Lord Wellesley) कम्पनी का गवर्नर जनरल बनकर भारत आया और उसने आते ही अपनी विस्तार-वादी योजना बनाई। 30 सितम्बर, 1803 को सुर्जीअर्जन की सन्धि के अनुसार दौलतराव ने अंग्रेजों को अपने अधिकृत स्थानों के साथ-साथ हरियाणा को भी प्रदान कर दिया। हरियाणा में गुड़गांव के मेव, अहीर और गूजरों ने, रोहतक के जाटों और रांघड़ों ने, हिसार के विश्नोई और जाटों ने, करनाल व कुरुक्षेत्र के राजपूत, रोड़, सैनी और सिखों ने, ब्रिटिश तथा उनके द्वारा नियुक्त किये गये स्थानीय सरदारों का लम्बे समय तक कड़ा विरोध किया। किन्तु अन्त में 1809-10 में समस्त हरियाणा पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया।

1857 के सिपाही विद्रोह में हरियाणा के शूरवीरों का महत्त्वपूर्ण योगदान था, किन्तु अंग्रेजों ने इस क्रान्ति को बड़ी बर्बरतापूर्वक दबा दिया और झज्जर व बहादुरगढ़ के नवाबों, बल्लभगढ़ व रेवाड़ी के राजा राव तुलाराम के राज्य छीन लिए। फिर ये राज्य या तो ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिये गये या नाभा, जींद व पटियाला के शासकों को सौंप दिये गये। इसके बाद हरियाणा पंजाब राज्य का एक प्रान्त बना दिया गया।

 

 

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