हिमाचल प्रदेश का मध्यकालीन इतिहास (भाग -I)
Medieval History of Himachal Pradesh (Part-I)
पहाड़ी राज्यों के मुगलों तथा सिक्खों का प्रभाव:
हिमाचल प्रदेश में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बाहरी शाक्तियों का प्रभाव रहा है। मध्यकाल में हिमाचल पर विभिन्न उद्देश्यों से आक्रमण होते रहे। बाहरी शक्तियों के हिमाचल की ओर आकर्षित होने का मुख्य कारण दुर्ग का शक्तिशाली होना महत्त्वपूर्ण कारण है। मध्यकाल के शासन में सामरिक दृष्टि से दुर्गों का विशेष स्थान है। किसी भी दुर्ग की सशक्ता उसके स्वामी की शक्ति की प्रतीक थी।
बादशाह जहांगीर लिखता है कि” कांगड़ा का दुर्ग एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। दुर्ग इतना दृढ़ है कि यदि आवश्यकता के अनुसार इसमें रसद और सामान रहे तो कोई भी शक्ति इसके आंचल तक नहीं पहुंच सकती है।”
मध्यकाल शक्ति ही सत्ता की प्रतीक थी। कांगड़ा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति आक्रमणकारियों के लिए उपयोगी रही है। अन्य अनेक पहाड़ी रियासतों की तुलना में राजनीतिक दृष्टिकोण से कांगड़ा दुर्ग पर अधिकार करने के राजनीतिक लाभ और अनेक पहाड़ी रियासतों की तुलना में कांगड़ा की उपयोगी भौगोलिक स्थिति बाहरी शक्तियों को इस ओर आकर्षित करती रही। कांगड़ा मध्यकाल से उल्लेखनीय तीर्थ स्थान रहा है। ज्वालामुखी का मन्दिर तीर्थ स्थान था। मध्यकाल में भी देश के उल्लेखनीय मन्दिरों में एक रहा है।
कांगड़ा के मन्दिरों में चढ़ावें के रूप में कई मन सोना और अन्य वस्तुए प्रति वर्ष चढती थी। मन्दिरों में आने वाले हिन्दू और इस्लाम धर्म के अनुयायी कोने-कोने से यहां आते थे।
हिमाचल में मुगलों का प्रभाव (Influence of Mughals in Himachal):
पानीपत की लड़ाई से भारतीय इतिहास में परिवर्तन आया। इस लड़ाई के परिणाम स्वरूप सुल्तानों का शासन समाप्त होकर मुगल शासन की स्थापना हुई। 1526 ई. से 1530 ई. तक सत्तारूढ़ रहा बादशाह बाबर इस स्थिति में नहीं था कि वह दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर ध्यान केन्द्रित कर पाता। बाबर के शासन काल में हिमाचल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तत्कालीन राजनीतिक स्थिति में पहाड़ी क्षेत्रों के विरूद्ध कोई अभियान भेजना संभव नहीं था।
शेरशाह का हिमाचल में आक्रमण (Sher Shah’s invasion in Himachal):
शेरशाह ने अपने शासन काल में जिन क्षेत्रों पर अधिकार स्थापित किया उन में पहाड़ी क्षेत्र भी सम्मिलित रहे हैं। शेरशाह का अधिकारी हमीद खां पहाड़ी क्षेत्रों से संबंधित था। हमीद खा द्वारा हिमाचल से संबंधित क्षेत्रों पर कोई भी व्यक्ति उसका विरोध करने का साहस नहीं करता था। यह तथ्य तो प्रकाश में आता है कि नगरकोट अथवा कांगड़ा के क्षेत्र परपर शेरशाह ने अधिकार स्थापित कर लिया था परन्तु कांगड़ा दुर्ग का अधिकार स्थापित हुआ हो इस बात की पुष्टि किसी ग्रंथ से नही होती है।
शेरशाह ने पहाड़ी क्षेत्रों पर प्रभाव स्थापित करने के पश्चात् इन पर नियंत्रण के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की। शेरशाह के शासन काल में ऐसा प्रतीत होता है कि वह अधिक समय तक इन क्षेत्रों पर अधिकार बनाए रखने में सफल नही रहा। लगभग पांच वर्ष के शासन के उपरांत शेरशाह की मृत्यु हो गई तथा उसके उत्तराधिकारी शासन को संभालने में सफल नहीं रहे।
अकबर का हिमाचल में प्रभाव (Akbar’s influence in Himachal):
अकबरनामा और तारीख फरिश्ता आदि रचनाओं के लेखकों द्वारा प्रयोग में लाया गया धर्म चन्द् नाम सही है। राम चन्द ने धर्म चन्द से पूर्व 1528 में कांगडा पर शासन किया। राम चन्द के पश्चात् धर्म चन्द 1528 ई. में सत्तारूढ़ हुआ था।
धर्मचन्द बादशाह अकबर का अधिपत्य स्वीकार करता रहा। अकबर के ही काल में धर्म चन्द की 1563 ई. में मृत्यु हुई ।
मणिक्य चन्द कांगड़ा का आगामी शासक बना। वह विद्धान शासक था। उसके शासन काल में कांगड़ा राजवंश में विद्धानों को आश्रय दिया गया। उसने स्वयं धर्म चन्द नाटक की रचना की। माणिक्य चन्द अकबर का अधिपत्य स्वीकर करता रहा। माणिक्य चन्द की मृत्यु 1570 ई. में हुई।
जै चन्द कटोच राज वंश का अगला शासक बना। आरम्भ में अकबर का अधिपत्य स्वीकार करने पर भी जै चन्द बादशाह अकबर के आदेशों की अवहेलना करने लगा। अकबर ने जै चन्द की सेवा के प्रति अनास्था और उसके विद्रोह भावना से प्रेरित होने के कारण कांगड़ा पर आक्रमण करने के आदेश दिये।
बादशाह अकबर द्वारा राजा जै चन्द को बन्दी बना लिया गया। राजा जै चन्द कांगड़ा से मुगल दरबार आते समय अपने पुत्र विधि चन्द को जसवाल रियासत के राजा गोबिन्द चन्द के संरक्षण में छोड़ आया था।
अकबर की कांगड़ा विजय: अकबर ने 1572 ई. में कांगड़ा पर आक्रमण करने के आदेश दिये। बादशाह अकबर ने कांगड़ा पर विजय के पश्चात् इसे राजा बीरबल को कांगड़ा का कार्यभार सोपा।
बन्दी बना लिये जाने के कारण विधि चन्द ने यह धारणा बना ली कि उसके पिता की मृत्यु हो गई। जै चन्द की मृत्यु हो जाने की धारणा के कारण
विधि चन्द ने स्वयं कांगड़ा की सत्ता सम्भाल ली और बादशाह अकबर के विरूद्ध विद्रोह कर दिया।
मुगल सेना ने इस अभियान के दौरान कोटला और गुलेर के दुर्गों पर अधिकार कर लिया। इस समय कोटला के दुर्ग पर कटोचों का अधिकार इस दुर्ग को कांगड़ा के राजा जै चन्द ने गुलेर के राजा से बल पूर्वक अधिक में लिया था। गुलेर का तत्कालीन राजा राम चन्द था।
जहाँगीर का हिमाचल में प्रभाव (Jahangir’s influence in Himachal):
जब जहाँगीर 1606 ई में गद्दी पर बैठा तो नगरकोट को जीतना उसकी योजना बनाई। 1615 ई में उसने पंजाब के प्रमुख मुर्तजा खान तथा धमेरी नूरपुर के राजा सूरजमल के बेटे राजा बासू को उसका सहायक सेनापति बनाकर काँगड़ा पर विजय के लिए भेजा। सूरजमल अपने राज्य के निकट मुगलों के प्रभाव के विस्तार और संगठन को पसंद नहीं करता था। जहाँगीर ने सूरजमल के विद्रोह को दबाने के लिए और किले को जीतने के लिए राजा बिक्रमाजीत और अब्दुल अजीज को भेजा। शाही सेना के दबाब से सूरजमल को मऊ के किले में शरण लेनी पड़ी राजा बिक्रमजीत ने किले पर विजय प्राप्त की। सूरजमल मऊ के किले से भाग कर तारागढ़ के किले में पहुचा जो कि चम्बा के अधीन था। लंबे समय के बाद किले की घेरे बंदी के बाद सूरजमल पराजित हुआ और वह चम्बा भाग गया और वहां पर उसकी मृतु हो गई उसकी सारी सम्पति पर मुगल बादशाह ने अधिकार कर लिया।
औरँगजेब का हिमाचल में आक्रमण (Aurangzeb’s influence in Himachal):
1678 ई में औरंगजेब ने चम्बा के सारे मंदिरों को गिराने का आदेश जरी किया। राजा चतर सिंह ने मुगल शासक के हुक्म को मानने से इंकार कर दिया और आज्ञा दी कि मुगल शाही आज्ञा की अवमानना के प्रतीक स्वरूप प्रत्येक मंदिर पर सोने से मढ़ी बुर्जी बनाई जाए। यह भी कहा जाता है कि राजा चतर सिंह ने गुलेर ,बसौली और जम्मू के राजाओं को मिलाकर पंजाब के मिर्जा रजिया बेग के पहाड़ी राज्यों पर आक्रमण के बिरुद्ध एक संघ बनाया। रजिया बेग पराजित हुआ और पहाड़ी राज्यों को उनका क्षेत्र वापिस मिल गया। काँगड़ा और चम्बा के राजा अकबर के समय से ही मुगलों के करदाता थे। चम्बा के राजाओं के साथ मुगलों ने उदारता का व्यवहार किया। इन राजाओं को नियमित रूप से नजराना भेंट करके मुगलों के प्रति अपनी स्वामी भक्ति प्रकट करनी पड़ती थी।
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