oak species in uttarakhand

उत्तराखण्ड में पाये जाने वाले बाँज की प्रजातियाँ (Oak Species in Uttarakhand)

बाँज की प्रजातियाँ
(Oak Species)

उत्तराखण्ड में बाँज के वनों का विस्तार विभिन्‍न ऊँचाइयों पर मख्य रूप से नम तथा उत्तरी ढलानों में पाया जाता है। सामान्यतः ये वन समुद्र तल से 1200 मीटर (4000 फीट) की ऊँचाई से लेकर 2500 मीटर (8300 फीट) के मध्य पाये जाते हैं, जैसे की दिए गए चित्र से स्पष्ट होता है। इस वृक्ष की विभिन्‍न प्रजातियों में तिलोंज बांज एवं खरसू बाँज अत्यधिक ऊँचाई मे पाये जाते हैं जबकि रियांज बाज मध्यवर्ती ऊँचाइयों में उगता है। फलियाँट प्रजाति, जो बाँज की भांति ही निचले एवं बसासत वाले क्षेत्रों की विशेषता है, बांज के समान विस्तृत रूप से नहीं पाई जाती। स्वाभाविक रूप से सभी प्रजातियों में बाँज ही सबसे अधिक जानी भी जाती है और पाई भी जाती है। विशेष बात यह है कि मानव कुप्रभावों का यही अत्यधिक शिकार भी हुई है। इन कारणों से ही इसके संरक्षण की भी सबसे अधिक आवश्यकता है क्योंकि एक तो इसका वितरण पर्वतों में जनसंख्या के वितरण के ही अनुरूप है दूसरा इसके बीजों को कई प्रकार के जंगली पशु पक्षियों द्वारा खाया एवं नष्ट किया जाता है तथा साथ ही इसके बीजों को नानाप्रकार के कीट एवं फफूदी से शीघ्र हानि होने की संभावनाएं भी रहती है।  ऐसी दशायें बाँज की अन्य प्रजातियों में कम पाई जाती है।

1. फलियाँट, फनियांट, हरिन्ज बाज

pheasant oak deer hawk oak species

बाँज की यह प्रजाति उत्तराखण्ड में 900 मीटर (3000 फीट) से 2000 मीटर (6600 फीट) की ऊँचाई के बीच में मिलती है। इसकी विशेषता यह है कि यह पानी के नजदीक या नदी नालों के पास विशेष रूप से उगती है। इस पेड़ का उपयोग कई प्रकार से किया जाता है, जैसे चारा, ईंधन, कृषि यंत्रों आदि के लिये। यह प्रजाति कुमाऊँ एवं गढ़वाल क्षेत्र में विशेषकर छायादार व नम गधेरों के समीप पायी जाती है। यह वक्ष उपरोक्त स्थानों में छोटे-छोटे समूहों में पाये जाते हैं तथा इनके विशाल एवं विस्तृत जंगल नहीं मिलते हैं।



2. बाँज

Quercus incana oak species

अन्य की तुलना में यह प्रजाति सबसे विस्तृत एवं उल्लेखनीय है तथा उत्तराखण्ड में ।200 मीटर (4000 फीट) की ऊँचाई से लेकर 2500 मीटर (8300 फीट) तक पायी जाती है। कहीं-कहीं अत्यन्त सीमित स्थानों पर उपयुक्त वातावरण मिलने के कारण बाज के वृक्ष चीड़ व साल के वनों के साथ-साथ 450 मीटर तक (500 फीट) के निचले क्षेत्रों में भी देखने को मिलते हैं। यह एक बहुत उपयोगी प्रजाति सिद्ध हई है क्योंकि इसकी लकड़ी का उपयोग खेती-बाड़ी के काम में आने वाले औजारों को बनाने तथा ईंधन के लिये सबसे अधिक मात्रा में – किया जाता रहा है। बाँज की लकड़ी से बने औजार व औजारों के भाग अधिक टिकाऊ होते हैं तथा ईंधन के रूप में भी यह लकड़ी आसानी से उपलब्ध एवं सरलता से जलने वाली और अधिक ऊर्जा उपलब्ध कराने वाली सिद्ध हुई है। इसके साथ-साथ बाँज की पत्तियाँ इस क्षेत्र के पशुओं की विशाल संख्या को चारा प्रदान कराने की दृष्टि से आज भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं एवं भविष्य में भी बहुत महत्वपूर्ण रहेंगी।

3. रियाँज, साँज बाँज (क्विरकस लानीजिनोसा)

Quercus lanuginosa oak species

यह प्रजाति उत्तराखण्ड में ।800 मीटर (6000 फीट) की ऊँचाई से लेकर 2450 मीटर (800 फीट) की ऊँचाई के मध्य पाई जाती है। भौगोलिक वितरण की दृष्टि से रियाँज कुमाऊँ के लगभग सभी जिलो में अधिक मात्रा में पाया जाता है जबकि गढ़वाल में इसका वितरण अत्यन्त सीमित रूप में है। रियाँज के पेड़ बांज के पेड़ों के साथ-साथ उगते हैं। कभी-कभी यह प्रजाति बांज रहित भागों में भी पायी जाती है। इस पेड़ का उपयोग भी बांज की तरह कई प्रकार से किया जाता है। रियाँज बाज अधिकांशत: चूनायुक्त मिट्टी के क्षेत्रों में ही उगता है और इस कारण इसका वितरण अत्यन्त बिखरा हुआ है।

4. तिलन्ज, मोरू, तिलोंज बाँज

Quercus floribunda oak species

यह प्रजाति उत्तराखण्ड के उच्च पर्वतीय भागों में लगभग 1800 मीटर (6000 फीट) की ऊँचाई से लेकर 3000 मीटर (10000 फीट) की ऊँचाई के बीच पाई जाती है। तिलोंज बांज की प्रजाति का वृक्ष गहरी मिट्टी, नम उत्तरी ढालों एवं चूनायुक्त क्षेत्रों में घने वनों के रूप में पाया जाता है। इसकी लकडी अत्यधिक टिकाऊ होती है। ईंधन के रूप में यह अन्य बाँजों के मुकाबले बहत अधिक ताप शक्ति वाली होती है। तिलंज बांज के पेड़ अधिक मोटाई बाले ब घने होते हैं। ये बन उच्च पर्वतीय भागों में ही पाये जाते हैं जहां सीमित मानव अधिवास मिलते हैं। कम जनसंख्या के कारण तथा सीमित मानव गतिविधियों के कारण यद्यपि इन वनों का इतना ह्रास नहीं हुआ है जितना मानव आबादी के समीप होने के कारण बाँज के वनों का, परन्तु तिलोंज के वनों में भी बड़े पैमाने पर स्थानीय एवं स्थानान्तरित होने वाले पशुओं के लिये चारे की निर्भरता बनी रहती है और इस कारण इन वनों में भी धीरे-धीरे कमी आती जा रही है। एक विशेष प्रकार का कीट तिलोंज की पत्तियों में तरह-तरह की छोटी -बड़ी गाँठ बनाता है, जो खाने एवं स्वाद में मीठा होता है। इसका उपयोग कछ भागों में फलों की तरह खाने के लिये भी किया जाता है-विशेषकर पश्चिमी गढ़वाल के जौंसार बाबर क्षेत्र में।

5. खरसू या खरू बाँज

Quercus semecarpifolia
 oak species

उत्तराखण्ड में खरस बाँज सबसे अधिक ऊँचाई वाले भागों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह प्रजाति 2100 मीटर (7000 फीट) की ऊँचाई से लेकर 3500 मीटर (11600 फीट) के बीच पायी जाती है। खरसू वनों की सबसे प्रमख विशेषता इनका विस्तृत वितरण एवं अत्यधिक घने रूप में पाया जाना है। स्थानीय निवासियों के मौसमी स्थानान्तरण एवं पशुचारक क्रियाओं के कारण इन उच्च भागों में भी बाँज की इस प्रजाति का उपयोग विभिन्‍न रूपों में किया जाता रहा है जैसे-चारा, कच्ची झोपड़ियों के लिये लकड़ी तथा ईंधन आदि में।

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