Viral Diseases

विषाणु जनित रोग (Viral Disease)

विषाणु जनित रोग (Viral Disease)


  • वायरस शब्द लुई पाश्चर ने दिया।
  • वायरस की खोज ईवेनो विस्की (Ivanovsky) ने की।
  • सबसे ज्यादा उत्परिवर्तन की क्षमता रखने वाला HIV वायरस है।
  • वायरस की संरचना एक सामान्य कोशिका स्तर तक के जीव जैसे अमीबा, पैरामीसियम से भी सरल होती है। वायरस का आनुवंशिक पदार्थ एक प्रोटीन कोट से घिरा होता है, उसे कैप्सिड (Capsid) कहते है।
  • सबसे छोटा वायरस खुरपक्का या मुँहपक्का वायरस (Porcine Circovirus) है तथा सबसे बड़ा पैरट फीवर वायरस (Parrot fever).
  • कुछ वायरस जीवाणुओं के आनुवंशिक पदार्थ को एक जीवाणु से दूसरे जीवाणु में ले जाने का कार्य करते हैं।
  • थर्मल डेथ प्वाइंट (Thermal death point) वह तापमान है जिस पर 10 मिनट तक रखने पर वायरस मर जाता है।

1. एड्स (AIDS):

2. इन्फ्लूएन्जा (Influenza):

  • जनक- मिक्सोवाइरस एन्फ्लूएंजाई
  • लक्षण- जुखाम-बुखार तथा सारे शरीर में दर्द होना।
  • होने का कारण- एक रोगी से दूसरे को लग जाती है।
  • बचाव के उपाय- सर्दी से बचना चाहिए

3. डेंगू (Dengue):

  • रोग जनक–अर्बो वायरस या विषाणु DEN-1,DEN-2,DEN-3 & DEN-4 के कारण होता है।
  • वाहक- मादा टाइगर या ऐडीज एजिप्टी
  • डेंगू दो प्रकार का होता है
    • क्लासिकल या हड्डी तोड बुखार- यह युवाओं में ज्यादा खतरनाक होता है
    • रक्त स्त्राव बुखार लक्षण- सिरदर्द, पेशीय पीडा, वमन, उदर पीडा, जोडो में दर्द, शरीर में हेमरेजिक स्थिति, बुखार प्लेटलेटस घट जाती है
  • उपचार- एसप्रिन व डिसप्रिन हानिकारक हो सकती है।
  • इसका टीका थाइलैण्ड में विकसित हुआ।
  • जॉच- ट्रॉनीक्वेट परीक्षण (Tourniquet test)

4. पोलियो (Polio):

रोग जनक- पोलियो वायरस

इस रोग के विषाणु भोजन एंव जल के साथ बच्चों की आंत में पहुच जाते है आँत की दीवारो से हाते हुए ये रूधिर प्रवाह के साथ रीढ रज्जु में पहुंच जाते है।जहाँ पर ये विभिन्न अंगों की मांसपेशियों को नियन्त्रित करने वाली तन्त्रिकाओं को क्षति पहुँचातें है जिससे माँसपेशिया सिकुड जाती है तथा बच्चे विकलांग हो जाते है।



उपचार- पोलियो से बचाव के लिए दो प्रकार के टिके उपलब्ध है-

  • साल्क का किल्ड वैक्सीन- इसे इन्जेक्शन द्वारा दिया जाता है
  • साबिन का सजीव वैक्सीन- मुख द्वारा पोलियो ड्रॉप के रूप में

5. पीलिया या हेपेटाइटिस (Jaundice or Hepatitis):

रोग जनक- हिपेटाइटस वायरस

यह रोग हिपेटाइटस ए,बी,सी,डी,ई,एवं जी प्रकार का होता है। इसमें हिपेटाइटस वायरस बी एक DNA विषाणु है जबकि बाकि RNA विषाणु होता है।

  • हिपेटाइटस A- इसे सामान्यतया पिलिया या यकृतीय अरोचकता कहते है यह दूषित भोजन व जल के कारण होता है जिसमें यकत क्षतिग्रस्त हो जाता है। यह शरीर में बिलिरूबिन की मात्रा बढ़ जाने का कारण होता है बिलिरूबिन का उपापचय यकृत में होता है लेकिन यकृत संक्रमित होने का कारण इसका उपापचय नहीं हो पाता है जिससें बिलिरूबिन रक्त में बढकर शरीर की त्वचा एंव म्यूकोसा में जमा हो जाता है जिससे शरीर का रंग पीला दिखाई देता है।
  • लक्षण- बुखार ,उल्टी ,पीलिया, दस्त का रंग हल्का हो जाता है मूत्र का रंग गहरा हो जाता है।
  • हिपेटाइटस B- इसे सीरम यकृत शोध कहते है यह वायरस HIV से भी ज्यादा खतरनाक विषाणु है। इसकी खोज 1965 में एक ऑस्ट्रेलियन के रक्त में डॉक्टर ब्लुमबर्ग ने खोजा इसलिए इसे ऑस्ट्रेलियन एण्टीजन भी कहते है। यह लैगिक योन सम्पर्क तथा माता द्वारा गर्भ के पले रहे शिशु को ,एक ही ब्लेड का कई लोगो द्वारा इस्तेमाल करने सें होता है।
  • लक्षण- ज्वर,पीलिया, वमन,मूत्र का रंग गहरा पीला भूख न लगना, आदि । इनके अलावा पीलिया C,D,E,G के विषाणुओं द्वारा भी होता है।
  • जॉच- Serum bilirubin, SGPT- (Serum glutamic pyruvic transaminase test), ELISA Test.
  • Note- पोलियो का टीका जॉन साल्क ने दिया

6. चिकनगुनिया (Chikungunya):

  • चिकनगुनिया एक अफीकी शब्द है जिसका तात्पर्य है-झुक जाना
  • रोग जनक- टोगा वायरस ,
  • वाहक- ऐडिज ऐजिप्टाई व एडीज एल्बोपिक्टस(Aedes Aiziepi and Aedes albopictus)
  • लक्षण- सिरदर्द,अनिद्रा,अत्यधिक थकान,शक्ति में कमी होना, बुखार आदि ।
  • उपचार- क्लोरोक्वीन फास्फेट प्रभावी दवा है।

7. मम्प्स या गलसुआ या गलसुआ (Mumps or gullsua)

  • रोगजनक- पेरामिक्सो वायरस (RNA विषाणु)
  • लक्षण- इस रोग के रोगी की लार ग्रन्थियों में सूजन आ जाती है तथा उसे बुखार रहने लगता है रोगी को मुंह खोलने में परेशानी होती है वयस्कों में इस रोग के कारण वृषण तथा अण्डाशयों में सूजन आ जाती है।
  • होने का कारण- यह रोग रोगी के गले से निकले विसर्जन एंव सम्पर्क द्वारा स्वस्थ बच्चों में फैलता है।
  • उपचार- दिन में दो बार सिकाई, एस्परिन से दर्द कम हो जाता है वृषणों में संक्रमण होने पर कार्टिसोन से आराम मिलता है, खसरे का टीका।

8. सॉर्स SARS- ( Severe acute respiratory syndrome):

  • रोजनक- कोरोना वायरस
  • लक्षण- रोग के आरम्भ में कंपकॅपी के साथ तेज बुखार आता है सिरदर्द,बदन दर्द एंव भूख लगना कम हो जाता है
  • रोग का फैलना- यह एक वयक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से श्वास के दौरान निकली सूक्ष्म बुन्दो से वायु द्वारा फैलता है।

9. स्वाइन फ्लू (Swine flu):

  • रोगजनक- वायरस H1N1
  • लक्ष्ण- श्वास लेने में पीडा,तेज ज्वर, कफ बनना सिरदर्द आदि।
  • उपचार- टेमीफ्लू

10. हाइड्रोफोबिया (रबीज) (Hydrophobia (rabies)):

  • रोगजनक- रेहब्डो वायरस(rhabdo virus) यह वाइरस समतापी जन्तुओं जैसे-कुत्ता,बिल्ली आदि में मिलता है।
  • लक्षण- सिरदर्द,हल्का बुखार, रागी को घाव के स्थान पर चिलमिलाहट,रोग की वरम सीमा में तो रोगी पानी देखते ही डर जाता है ,रोगी पागल हो जाता है।
  • होने का कारण- यह रोग लाइसा वाइरस टाइप -I द्वारा होता है जो पागल कुत्ते के काटने से मनुष्य में पहुचँता है यह मानव की तन्त्रिका तन्त्र में प्रवेश कर केन्द्रिय तन्त्रिका तन्त्र को नष्ट करता है।
  • बचाव के उपाय- एण्टीरेबीज इंजेक्शन लगवाने चाहिए। रेबीपुर तथा HDCV इस रोग के टिकें है।
  • रेबीज टीका की खोज लुई पाश्चर (Louis Pasteur) ने की।

11. चेचक या शीतला (Smallpox or Sheet):

  • जनक-वेरिसेला जोस्टर वायरस (Varicella zoster virus)
  • लक्षण- संक्रमण के साथ रोगी बच्चे को कॅपकपी के साथ तेज बुखार आता है तथा कमर एंव सिरदर्द रहता है। तीसरे दिन ज्वर तो उतर जाता है लेकिन पूरे शरीर पर बड़े बड़े दानों के समान फफोले निकल आते है जो धीरे धीरे तरल पदार्थो से भरी पुटिकाओं में परिवर्तित हो जाते है अब येपूटिकाए स्फोट में बदल जाती है और इनके स्थान पर त्वचा पर धब्बे पड़ जाते है इन्हे चेचक के निशान कहते है। नाक बहना, सिरदर्द, उल्टी कमर का दर्द तथा शरीर में दानों का निकलना।
  • होने का कारण- छूत के कारण फैलता है।
  • बचाव के उपाय- चेचक का टीका लगवाना चाहिए तथा इसके रोगी को पृथक और स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिए।

 

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