बीमारी और उनके लक्षण (Disease and Their Symptoms)
- रोग विज्ञान (Pathology)- रोग उत्पन्न करने वाले कारकों की पहचान, उनकी संरचना व रोगों के निदान से सम्बन्धित अध्ययन को पैथोलॉजी कहते है।
- रोग (Disease)- सामान्य अवस्था में कोई परिवर्तन जो कि असहजता या अक्षमता या स्वास्थय में क्षति उत्पन्न करता है।
बीमारी के प्रकार (Types of disease)-
रोग अथवा बीमारी का कोई कारक होता है, जिसके कारण रोग होता है, इन्ही कारको को निम्न प्रकार में बाटा गया है-
- जीवाणु जनित रोग (Bacterial diseases)
- विषाणु जनित रोग (viral disease)
- प्रोटोजोआ जनित रोग (Protozoa born disease)
- कृमिरोग (Helminthiasis)
- असंक्रामक रोग (Non-communicable disease)
जीवाणु जनित रोग (Bacterial diseases)-
1. हैजा (Cholera):
- लक्षण- लगातार उल्टी व दस्त होना,पेशाब बंद, पेट में दर्द, प्यास अधिक , हाथ पैरो में ऐठन, ऑखें पीली पड़ जाती है।
- होने का कारण- गर्मी व बरसात के दिनों में फैलता है। दूषित भोजन, फल, सब्जी का सेवन तथा मक्खियों द्वारा फैलता है।
- बचाव के उपाय- हैजे की पेटेन्ट दवा नाइटोन्यूग्रेटिक अम्ल की 10 बूदें व अमृतधारा की 5 बूदें। नीबू का अधिक सेवन, रोगी के कपडे को फॉर्मेलीन और कार्बोलिक अम्ल से धोकर सुखाना चाहिए। हैजा के रोगाणु की खोज रॉबर्ट कोच ने की (Cholera’s germ is discovered by Robert Koch).
2. डिप्थीरिया या कंठ रोहिणी जनक (Diphtheria)-
- जनक- कोरोनीबैक्टीरियम डिप्थीरिया (Coronary bacterial diphtheria)
- लक्षण- श्वास लेने में अवरोध उत्पन्न होना। (अधिकतर बच्चों में) संक्रमण गले में सफेद मटमैली झिल्ली बनती है वायु मार्ग अवरूध ,सांस में तकलीफ, तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है।
- होने का कारण- दूषित फल-सब्जी तथा वायु द्वारा फैलता है।
- बचाव के उपाय- बच्चों को डी.पी.टी. का टीका लगवाना चाहिये।
- जॉच- शीक टेस्ट (schick test)
- डी.पी.टी- डिप्थीरिया, टिटनेस व कुकर खाँसी
3. कोढ़ या कुष्ठ रोग (Leprosy)-
- जनक- माइकोबैक्टिरियम लेप्री
- खोजकर्ता- कुष्ठ के रोगाणु का पता हेनसन (Gerhard Armauer Hansen) ने लगाया।
- लक्षण- शरीर की त्वचा की संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है चमड़ी में घाव पड़ जाते हैं और चमड़ी गलने लगती हैं।
- होने का कारण- रोगी के अधिक सम्पर्क व मक्खियों द्वारा फैलता है।
- बचाव के उपाय- एण्टीबायोटिक्स व गंधक का प्रयोग, एण्टीसेप्टिक स्नान आदि भी उपयोगी है।
- ईलाज- Multi drug therapy 1981 से शुरू
- कुष्ठ दिवस- 30 जनवरी
4. प्लेग (Plague)(Black death)-
- जनक- बैसिलस पेस्टिस(Bacillus pestis)
- वाहक- पिस्सु (जिनोपोप्सिला कीओपिस) , चूहे, गिलहरी आदि
- लक्षण- बहुत तेज बुखार तथा जोड़ों में गिल्टी का हो जाना, कुछ प्रकार के प्लेग में लाल रूधिर कणिकाएँ भी नष्ट हो जाती है।
- होने का कारण- चूहों पर पिस्सू के उत्सर्जी पदार्थों से फैलती हैं।
- बचाव के उपाय- प्लेग का इंजेक्शन लगवाना चाहिए व चूहों को घर से निकालना चाहिए।
5. T.B. या तपैदिक या क्षय रोग (Tuberculosis)-
- जनक- माइकोबैक्टिरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis)
- टी बी की खोज- रार्बट कोच 1882
- लक्षण- T.B के लक्षण शरीर में सक्रमण के स्थान के अनुसार परिवर्तित होते है। रोगी को बार बार खाँसी के साथ कफ और खून का आना तथा लगातार कम होना और कमजोर होना। शरीर की प्रतिरोधकता में कमी आने पर सक्रिय हो जाते है ये टयूबरकुलीन नामक टॉक्सीन पैदा करते है। टी बी के दो विशेष स्थान है- 1 फेफडा 2 लसीका ग्रन्थि।
- होने का कारण- रोगी के कफ, हवा, सम्पर्क के साथ दूसरे स्थान पर फैलता है।
- बचाव के उपाय- उपचार के लिए बी.सी.जी. का टीका लगवाना चाहिए तथा स्वच्छता से रहना चाहिए।
- ईलाज- Direct observation treatment short course therapy (DOTS)
- जाँच- Mantoux test
- T.B दिवस- 24 march
6. टायफाइड या मियादी बुखार या मोतीझरा (Typhoid)-
- जनक- साल्मोनेला टाईफी (Salmonella typhy)
- लक्षण- तेजी से बुखार आना जो कि सदैव बना रहता है। दोपहर बाद बुखार अधिक तेज होता है। अधिक होने पर आंत में छिद्र हो जाना।
- होने का कारण- खाने-पीने में दूध में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से फैलता है।
- बचाव के उपाय- टायफाइड का टीका लगवाना चाहिए। वर्तमान में ओरल टॉयफाइड वैक्सीन के रूप में उपलब्ध है। TAB टीकाकरण 3 वर्ष के लिए असंक्राम्यता प्रदान करता है। टाइफाइड ओरल वैक्सिन भी टाइफाइड की रोकथाम करती है ।क्लोरमाइसेटिन औषधि।
- टाइफाइड के जीवाणु का पता रो बर्थ ने लगाया।
- जाँच- विडाल टेस्ट (जार्ज फर्नाड वीडाल प्रथम 1896)
- टाइफाइड बुखार का कारण बनने वाले बैसिलस की खोज सबसे पहले 1879 में कार्ल जोसफ एबर्थ ने की थी।
7. न्यूमोनिया (Pneumonia)-
- जनक- स्ट्रेप्टोकॉकस (डिप्लोकोकस न्यूमोनी)
- लक्षण- फेफडो में सक्रमण, श्वास लेने में पीडा,तीव्र ज्वर ,ठंड लगना , कफ बनना, तीव्र संक्रमण में होठों तथा नाखुनों का रंग नीला होने लगता है।
- होने का कारण- निमोनिया कारक शरीर में श्वसन नाल से होकर प्रवेश करते हैं। जीवाणु सक्रमित व्यक्ति के छीकने ,खॉसने व थूकने पर फैलता हैं। जूठा खाने व छूने से यह रोग फैलता है।
- बचाव के उपाय- संक्रमित व्यक्ति से सीधे सम्पर्क से बचना चाहिए।
- जाँच- नाइल सोल्यूबिलिटी टेस्ट (Nile Solubility Test).
Read also: